नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर एक बार फिर से राजनेताओं एवं जनता के बीच माहौल गरमा गया है। बीते शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिपण्णी में कहा की सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण देना मौलिक अधिकार नहीं है वहीँ इसे लागू करना या न करना राज्य सरकार पर निर्भर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया की कोई भी कोर्ट एससी या एसटी वर्गों के लोगों के लिए आरक्षण देने का आदेश जारी नहीं कर सकता।
भारत के उच्च कोर्ट के द्वारा की गयी इस टिपण्णी को लेकर अब विपक्षी दल केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं की वे सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट के द्वारा की गयी टिपण्णी पर पुनर्विचार याचिका दायर करे।
यह बात तब शुरू हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमे उन्होंने राज्य सरकार से एससी और एसटी के आंकड़े मांगे थे।
अब बिहार की बात करें तो पिछले साल 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण पर लगी पहले से रोक को यथावत रखने का निर्देश दिया था जिसे हटाने को लेकर बिहार सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है।
बिहार सरकार का कहना है की पदोन्नति में आरक्षण पर लगी रोक के कारण सरकार किसी भी कर्मी को पदोन्नति नहीं दे पा रही है। पदोन्नति में आरक्षण पर लगी रोक के कारण दोनों वर्गों की पदोन्नति प्रक्रिया ठहरी हुई है। जी हाँ इसमें सामान्य एवं आरक्षित वर्ग दोनों शामिल हैं।
आपको बता दें की कुल 44 महकमों में से 26 महकमों में 21,275 पद खाली हैं जिन्हें पदोन्नति के जरिये भरना है। इन खाली पदों में से 17109 पद सामान्य वर्ग के लिए हैं वहीँ 3957 पद एससी के लिए तो 209 पद एसटी वर्ग के लिए खाली है।